Wednesday, November 14, 2018

दीन दयाल भरोसे तेरे , सब परिवार चढाया बेढे

दीन दयाल भरोसे तेरे ,
  सब परिवार चढाया बेढे

यह बानी कबीर जी की है कबीर जी परमात्मा के आगे अरदास करते है इस शबद मे शुरु मे आप कहे रहे – दीन दयाल दीन वो किसे कहते है ?

वो परमात्मा को दीन कह रहे हैं, हे दीन के दाते गरीबो के रखवाले  मै सब तेरे नाम पर सौप रहा हूँ ।

सब परिवार , परिवार वो अपने परिवार को नही कहे रहे वो परिवार अपने ईन्द्रीयो को बोल रहे है ।

पाँच ज्ञान ईन्द्रीय पाँच कर्म्रन्द्रीय एक मन उसे परिवार कहते हे ये जो शरीर है ये परिवार तेरे नाम के नौका पर चढाया है और सब तुझ पर सौपा है । आगे सब तुझे सभांल करनी है ।

मालिक , आगे समझाते हे प्रभु परमात्मा की भक्ती कैसी करनी है ?

इस लाईन मे उदाहरण देकर समझाते है

राम जपीयो जी ऐसे ऐसे
ध्रुव प्रहेलाद जपीयो हर जैसे 

हम सब को पता है भक्त प्रहलाद को अपने पिता ने कितना दुख दीया नाम जपने के लीये बंदी रखी थी तो भी उन्होने अपना प्रयास लक्ष नही त्यागा उन्होने इतनी वेदना होते हुये भी मालिक की भक्ती मे कोई कसर नही छोडी ऊनके पिता ने ऊनका अंत करने का भी प्रयास किया था पर वो डरे नही, वैसी  ही घटना ध्रुव के जीवन की थी ऊन्होने भी सबकुछ त्यागकर राजमहल छोडकर भक्ती मारग अपनाया था ।

तो कबीर जी कह रहे की भक्ती करनी है तो लोक लाज से भय मुक्त होकर भक्ती करो ।

आगे समझाते हैं 

जा तीस भावे ता हुकम मनावे
इस बेढे को पार लगाये

हम इस प्रकार की भक्ती करेगे तो ऐसे हुकम मे रहते हुये प्रभु भक्ती करेगे तो अवश्य ही वो परमात्मा हमारी जीवन की नैया को इस भवसागर से पार ले जाकर रहेगा ।

आगे समझाते हैं

गुरु परसाद ऐसी बुध समानी
चुक गई फिर आवन जानी 

बडा सुंदर इशारा दे रहे आपजी गुरु की दी हुई युक्ती शबद प्रसाद नाम भेद मे हमे हमारे मन बुध्दी के विकारो को समर्पीत करना है हमे पुरी तरह से गुरु हुकम से समरुप होना है ।

 इस प्रकार से हम गुरु ऊपदेश पर चलेगे तो भवसागर पार हो पायेगे हमे गुरू ने दीया हुवा रास्ता है वो रास्ते पर हमे बीना वीचार करते हुये चलना है ऐसे हम करेगे तो हमारा जनमो जनमो का सफर पूरा हो जाएगा

चुक गई फीर आवन जानी

हम इस आवागमन के चक्र से मुक्त होगे
इस लिये गुरु साहब की प्रेरणा लेते हुये हमै ऐसे हुकम मे रहेते हुये  भक्ती की और जोर देना है ।

आखरी मे समझाते हैं

कहो कबीर भज सारँग पानी 
ऊरवार पार सब एक दानी

अंत मे हमे और एक उदाहरण दे रहे है 
सारीग गुरुसाब हिरन को बोलते है जब धुप के दिन होते है तो जगलो मे हिरन पानी के लीये दिन भर ईधर ऊधर भागता रहता है पानी की तलाश मे पर अपना ऊदेश कभी नही छोडता वो पानी की प्यास बुजाने के लिये सारा दिन धुप लाट के पीछे पीछे पानी समझकर दौडता है क्यो की वो पानी का प्यासा होता है ।

वैसे गुरु साहब हमे समझाते है भक्ती करनी है प्रहलाद ध्रुव हिरन इनकी तरह की करो
गुरू प्यारी साध संगत जी सभी सतसंगी भाई बहनों और दोस्तों को हाथ जोड़ कर प्यार भरी राधा सवामी जी...

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