Wednesday, November 14, 2018

मौत कैसे होती है ?


मौत का जब आक्रमण शुरू होता है तब पैरों की तरफ से प्राण ऊपर को खीचने लगते हैं ! उस समय बड़ा कष्ट होता है ! दिल की धड़कन बढ़ जाती है,चक्कर आने लगते हैं,स्वांस रुक-रुक कर चलती है ! दम घुटने लगता है और चिल्लाता पुकारता है ! यह क्रम कुछ देर तक चलता रहता है और प्राण खींचकर झटका दे देकर कमर तक का भाग त्याग देते हैं ! वह भाग शून्य हो जाता है,निर्जीव मुर्दा जैसा हो जाता है जैसा लकवा मार गया हो ! उसमे कोई हरकत नहीं होती !तब लोग कहने लगते हैं कि इधर की नब्ज छुट गयी ! इसी प्रकार प्राण खींचकर कंठ में रुक जाता है और कंठ से नीचे का भाग निर्जीव हो जाता है ! न वो हिल सकता है और न ही हरकत कर सकता है ! साथ ही जुबान भी निर्जीव होकर बंद हो जाती है और दम बुरी तरह घुटता है ! आँखों सेआंसू निकलने लगते हैं पर वो बता नहीं सकता कि क्या तकलीफ है ! पास के लोग सगे सम्बन्धी बेटे बेटी सब खडे-खडे देखते हैं और खुद भी रोते हैं पर समझ नहीं पाते कि क्या कष्ट हैं ! यह दशा बहुत देर तक रहती है !
फिर भयानक शक्ल यमदूत की उसे दिखाई देती है ! उसकी भयानक शक्ल देखकर आँखे फिरने लगती है ! वो बोलते हैं कि मकान खाली करो !उसकी भयानक आवाज सुनकर सिर फटने लगता है मानो हजारों गोला बारुदों की आवाज आ रही हो ! यह दशा बड़ी भयानक होती है और वही जान सकता है जिस पर बीतती है ! तब यमदूत एक फंदा फेंकते हैं और आत्मा को पकड़कर जोर का झटका देते हैं !उस समय आँखे उलट पुलट हो जाती है और उस कष्ट का वर्णन नहीं हो सकता ! यमदूत का लिंग शरीर होता है ! प्राणों को निकाल कर यमदूत घसीटते हुए ले जाते हैं और धर्मराय की कचहरी में पेश कर देते हैं जहाँ कर्मानुसार सजा सुनाई जाती है ! यह है मौत का दृश्य !
महात्मा इन दृश्यों को देखते रहते हैं और भूले जीवों को चेताते रहते हैं कि सम्भल जाओ होश में आ जाओ वर्ना एक दिन सबकी यही दशा होने वाली है ! जीव के सच्चे रक्षक संत सतगुरु होते हैं जो जीव को काल के दंड से बचा लेते हैं ! भज़न सिमरन कर सतगुरु का ध्यान करके इस कलयुग में बचा जा सकता है !!

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