Thursday, November 15, 2018

एक दिन जब बाबा जी स्टेज पर आये तो बाबा जी क्या कहते है किर्पया ध्यान से सुनना

एक दिन बाबाजी स्टेज पर आए ओर बडे मनमोहक से चिरपरिचित अंदाज मे संगत से राधास्वामी की ओर गद्दी ( कुर्सी) पर विराजमान हुए दृष्टि संगत पर डाली ।

बाबाजी ने फरमाया कि जी की ( विश्वास पर हम आज बात करते है। कि हम सभी को संतमत पर अपने कामिल मुर्शिद पर  सतगुरु पर विश्वास है । कितने लोग है जिन्हे अपने सतगुरु पर विश्वास है। जिन्हे है उनको मुबारक है। भाई अगर विश्वास नही रखोगे तो रिश्ता कैसै जुड़ेगा उस मालिक से ओर रिश्ता जुड़ेगा भजन सिमरन से।

               सतगुरु का हुकुम एक ही है वो है भजन सिमरन ।लोग ब्यास आते है लेकिन सत्संग कोई सुनता नही । यहां आकर स्नेक बार , काफी शाप, लस्सी पीने सोने बस जी हो गई कार्यवाही जी।

(सबसे दिल को लगने वाली बात)

              कभी किसी ने ये पुछने की जेहमत नही उठाई कि मत्था किसे टेकता हूं।
मे मत्था टेकता हूं अपनी संगत को।

                  लोग आगे पीछे के चक्कर मे रहते है क्या आगे क्या पीछे बैठना ।
प्यार ओर विश्वास होना चाहिए जी मालिक सब जानता है जी।
यहां कोई आपकी हाजरी नही लगवानी न कार्यवाही देखनी है जी।

              मालिक आपसे क्या मांगता है थोडा सा वक्त ही न हम वो नही दे सकते।
कोई रिश्ता निभाने के लिए वक्त देना पडता है।जैसे पति पत्नि का अगर एक दुसरे को वक्त ओर ध्यान नहीं देगे।मां बाप बच्चो को तो क्या रिश्ता निभ पाएगा । जी बिलकुल नही वक्त ओर ध्यान देना पडता है।

               हुकम पर बाबाजी ने फरमाया की जी आप बोलते है जी तन मन धन से आपकी सेवा करेगें जी। मन दे नही सकते वो कही ओर ही है।

              सरदार बहादुर जी की साखी का जिक्र किया कि जी उनके कमरे मेे फोटो टांगनी थी लेकिन उनको उपर चढ़ने के लिए स्टूल नही मिल रहा था सो हुजुर ने फरमाया कि जी मंझी ( पलंग) पर चढ़कर  टांग लो जी।

तो सेवादार कहीं से स्टुल ले आया उसपे चढकर टांग ली ओर हुजूर  से अर्ज की कि जी में  आपकी मंझी पे कैसे पैर रख सकता हूं।

          तो हुजूर ने फरमाया कि मंझी पर नही पर जुबान पर तो पेर रख दिया।

           हुकुम जी हुकुम

बाबाजी ने फरमाया इतनी दूर से यहां सिर्फ कार्यवाही करने आते है।

            यहां सत्संग सुनने कोन आता है।कोई व्यापार मै तो कोई परिवार मे तो कोई 10 मिनट बाद सो जाता है । कोई विरला ही पूरा सत्संग सुनता है।

हम उस मालिक से प्यार भी गर्ज से करते है। अपनी मंगे रख के बैठ जाते है। उसमे भी शर्तै ये नही ,ऐसे नही वैसे चाहिए
              आप भजन सिमरन करो उस पर विश्वास रखकर देखो जी फिर वो आप ही सब कारज संवारेगा जी।

फिर फरमाते है थोडा वक्त दो ,बाकि सब वो देख लेगा जी।पर ईंसान पर थोड़े ही संकट तकलीफे आती है वो डोलने लगता है।अपने सतगुरु पर विश्वास नही रखता।
अपने गुरु के हुकुम को ताक पर रखकर भर्मो भुलावो में  पड़कर मंदिरो, गुरुद्वारो मे मत्थै टेकना , रिद्धियो सिद्धीयो मे पड़ जाता है।
ये दुख तकलीफे आती जाती रहती है । इनसे अपने विश्वास को न डोलने दे उस मालिक पर पुरा विश्वास रखे।
वही विश्वास आपकी भजन सिमरन मे मदद करता है ।इससे उस मालिक से रिश्ता भी कायम रहेगा ।
इंसान पर इतनी बक्शिश हुई है ये इंसानी जामा मिला है। फिर उस मुर्शिद ने "नाम दान" की बक्शिश की जी। पर इंसान इतना नाशुक्रा है कि जानवर भी उससे अच्छे है। जिस थाली मे खाता है उसी मे छेद करता है । इतना सब मिला है फिर भी उसका शुक्र नही करता है।हुजुर ने इतनी दया की है ।पहले पानी दुर से लाना पडता था।सहुलियते काफी है हो गई है  सराय ,कमरे ,पंखे ,कुलर सभी है पर फिर भी बोलते है गर्मी है ,शुकर की कोई बात ही नही उसमे भी मीन मैंख निकालते है,पहले ये सोचे क्या इन सबके लायक है जी हम सब।

फिर भजन सिमरन पर जोर देकर फरमाते है कि जी ये बातो का मजमुन नही है, करनी का मार्ग है, करनी से ही होगा ।
दुख तकलीफे शरीर को होती है आत्मा को नही जी। अपना दायरा शरीर तक सीमित न रखे जी ।
हमे इन सब से उपर उठकर भक्ति करना है।
आज से अभी से भजन सिमरन शुरू करे जी अभी भी कोई समय नही निकला है जी

यही मुक्ति का मार्ग है ।
इसे भजन सिमरन द्वारा ही तय करना पडेगा।
बाबाजी ने कहा कि क्या हमे बडे महाराज जी की बाते याद है उनका हुकुम क्या था। बस ब्यास आ जाना ही मकसद नही उनकी बातो पर अमल भी करना चाहिए।
बाबाजी ने फरमाया कि आप जी को क्या कहा गया है कि जी आप आराम से अपनी जिंदगी गुजारते हुए । 2.30 धंटे भजन सिमरन करना है।उनका यही हुकुम है । वो ये भी तो बोल सकते थे कि जी घर बार छोड़ के त्यागी बनके भक्ति करो।

             आज बाबाजी कुछ नाराज कुछ प्यार वाली बाते की ।उन्होने कहा कि सच्चे सिख का क्या धर्म है ।सिर्फ तलवार रखना नही।
सच्चे हिंदु का धर्म सिर्फ टीका या जटाए रखना नही है।
 पहले सच्चे इंसान बनो ।
वो मालिक आपके कर्म देखेगा।जमीने जायदादे नही पुछेगा।फिर उन्होने कहा मेरी संगत की कोई बात ही नही जी।
अगर आज हुकुम कर दे कि ये सेवा करनी है लाखो संगत जमा हो जाएगी।

 (हल्की मुस्कान के साथ)

तो जब बाहरी सेवा के लिए रात क्या दिन क्या नही देखते तो फिर भाई अंदर की सेवा के लिए वक्त निकालो भाई इसमे आपका ही फायदा है जी।

सिर्फ भजन सिमरन से ही होगा जो होगा ।
सच मे  हमारे सतगुरु ने हमसे मांगा ही क्या है ।2.30 घंटे बस जी फिर वो हमारे कारज स्वार्थ ओर परमार्थ दोनो ही संवारने का वायदा करते है ।पर पहले हमे भी अपना किया वादा निभाना है जी।

आईये हम सभी अपने सतगुरु की खुशी हासिल करे भजन सिमरन करके जी
जितना मे सुन समझ पाया और समझ सका उतना ही भेज रहा हूं जी।।

सतगुरु अक्सरअपने सत्संग में फरमाते हैं कि - Attachment Causes Detachment



Attachment Causes Detachment

इस बात को रहीम जी ने भी कितने साफ़ और सुन्दर लफ्जो में कहा हैं कि - रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ी चटकाय। जोड़ी से फिर न जुड़े, जुड़े गाठ पर जाये।।

फरमाते हैं कि -"रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ी चटकाय" .

मालिक से प्यार का रिश्ता एक प्रेम रूपी धागे की तरह हैं जिसे कभी सपने में भी तोड़ने की भूल नही करनी चाहिए लेकिन हम नादान लोग तो उस रिश्ते को हक़ीक़त में भूलने को तैयार रहते हैं। इन दुनियावी रिस्तो की दलदल में फंस कर उस मालिक से प्यार के रिश्ते को नही भूलना चाहिए। क्युकी अगर दुनिया में कोई एक भी रिश्ता सच्चा हैं हैं तो वो उस कुल मालिक का रिश्ता हैं। वो सच्चे परमात्मा का रिश्ता हैं। जो परमात्मा हर पल साँसों सास हमारे साथ रहता हैं। जो एक पल के लिए भी हमें खुद से अलग नही करता और जो हमारे साथ हमेशा रहता हैं। जीते जी भी और मरने के बाद भी। तो कैसे हम उसकी दी पनाह को इन दुनियावी दिखावे से भूल सकते हैं। कभी नही। आगे रहीम जी फरमाते हैं। कि

जोड़ी से फिर न जुड़े, जुड़े गाठ पर जाये।।

कितना सही बयां किया हैं। जैसे धागा अगर एक बार टूट जाता हैं फिर अगर आप किसी तरह से हां ना करके अगर उसे जोड़ भी लेते हो तो वो पहले जैसी बात नही आती हैं क्युकी उस सीधी डोरी में एक गाठ पड़ जाती हैं। वही हाल कुछ परमार्थ का हैं। अगर परमात्मा को सिर्फ आप दिखावा करोगे तो प्यार कभी पूरा नही पा सकते। कही न कही प्यार में कमी दिखती ही रहेगी। और वही से सुख दुःख होने शुरू हो जाते हैं। क्युकी रिस्ता हमेशा उसी के साथ बनता हैं जिस से हम प्यार से रिश्ता बनाना चाहते हैं। और प्यार के साथ रिश्ते की सबसे बड़े कड़ी होती हैं उस रिश्ते को बनाये रखने के लिए समय देना। रिश्ते तो हम मालिक से चाहते हैं लेकिन हम उस रिश्ते को निभाने के लिए हमारे पास समय ही नही हैं तो फिर सभी लोग अच्छे से जानते हैं वो रिश्ता कितना पक्का बन सकता हैं।

Wednesday, November 14, 2018

Beautiful Saakhi - एक सज्जन थे जिन्होंने महाराज जी से नाम दान लिया हुआ था



एक सज्जन थे जिन्होंने महाराज जी से नाम दान लिया हुआ था
वह नई दिल्ली में एक निजी कंपनी में ड्राइवर थे, उनका काम था कि वह रोज़ कंपनी की गाड़ी में कनाट प्लेस किसी बैंक में जाते थे और उनके साथ कंपनी का कैशियर भी होता था

एक दफा जब वह कनाट प्लेस के ‘कॉफी हाउस’ के नजदीक से गुजर रहे थे तो उन्होंने वहां महाराज जी की गाड़ी खड़ी देखी और पास ही महाराज जी का ड्राइवर भी था लेकिन उनको महाराज जी कहीं नज़र नहीं आये फिर वह सोचने लगे की हो न हो महाराज जी भी जरुर आस-पास गए हैं तो उनके मन में दर्शनों की तड़प उठने लगी वो बहुत ही बेचैन हो गए लेकिन समस्या यह थी की वोह उस समय कंपनी की ड्यूटी पर थे

अब मन ही मन सोचने लगे की क्या किया जाये तभी उनके मन में विचार आया की चलो मैं इस कैशियर से झूठ बोल देता हूँ की मुझे उस गाड़ी के मालिक से पांच सौ रूपए लेने है जो की उसने मुझसे पकिस्तान में उधार लिए थे लेकिन फिर मन में सोचता है कि कहीं मेरे झूठ बोलने से मेरा मालिक मुझ से नाराज न हो जाये इसलिए वो मन में महाराज जी से झूठ बोलने के लिए माफी मांगने लगे, अब प्रार्थना करने के बाद उन्होंने उस कैशियर से बिलकुल वैसा ही बोला जैसा मन में सोचा था, कैशियर जो था वो रुपयों के लेन देन में बहुत चुस्त था इसलिए तुंरत मान गया और बोला की तुम जाओ और अपने पैसे ले लो मैं गाड़ी खुद ही ले जाऊंगा

इतना सुनकर वो सज्जन तुंरत गाडी से उतर गए और महाराज जी की गाडी के पास चले गए महाराज जी का जो ड्राइवर था वो इन सज्जन का जानकार निकला इन्होने उसको पूछा की महाराज जी कहाँ हैं तो ड्राइवर ने कहा की भाई महाराज जी, महारानी साहिबा और महाराज जी के भाई साहेब जी इस ‘कॉफी हाउस’ में ‘कॉफी’ पीने के लिए गए हुए हैं | अभी आने वाले ही होंगे, वो दोनों अभी बातें ही कर रहे थे कि महाराज जी बाहर आ गए, उस सज्जन की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा और वो अपनी भावनाओं को दबा कर धीरे-धीरे रोने लगे और मन में सोचने लगे की मैंने दर्शन तो कर ही लिए हैं अब मैं महाराज जी के बीच में क्यूँ आऊ इसलिए थोडा पीछे को जाने लगे कि तभी महाराज जी ने आवाज दे कर कहा : “भाई तू अपने पांच सौ रूपए तो लेता जा जो मैंने तुझ से पाकिस्तान में लिए थे” इतना सुनते ही वो फूट-फूट कर रोने लगे और जब तक महाराज जी चले नहीं गए तब तक ऐसे ही रोते रहे
हमारे सतगुरु जानी जान हैं, उनसे कुछ नहीं छिपता            

क्या भगवान हमें देख रहे है ?



हमारे घर के पास एक डेरी वाला है. वह
डेरी वाला एसा है कि आधा किलो घी में
अगर घी 502 ग्राम तुल गया तो 2 ग्राम
घी निकाल लेता था।

एक बार मैं आधा किलो घी लेने गया. उसने मुझे 90 रूपय ज्यादा दे दिये ।
मैंने कुछ  देर  सोचा और  पैसे  लेकर
निकल लिया। मैंने  मन में  सोचा  कि
2-2 ग्राम  से तूने  जितना  बचाया था
बच्चू अब एक ही दिन में निकल गया।
मैंने घर आकर  अपनी  गृहल्क्षमी  को
कुछ नहीं बताया और घी दे दिया।

उसने जैसे ही घी  डब्बे में पलटा आधा
घी बिखर गया, मुझे झट से “बेटा चोरी
का  माल मोरी में”  वाली  कहावत  याद
आ गयी,  और साहब यकीन मानीये वो
घी किचन की सिंक में ही गिरा था।

इस वाकये को कई महीने बीत गये थे। परसों  शाम को मैं  वेज रोल  लेने गया,
 उसने भी  मुझे  सत्तर रूपय  ज्याद  दे
दिये,  मैंने मन ही मन सोचा  चलो बेटा
आज फिर चैक करते हैं की क्या वाकई भगवान हमें  देखता  है। मैंने रोल पैक
कराये और पैसे लेकर निकल लिया।


आश्चर्य तब हुआ जब एक रोल
अचानक रास्ते में  ही गिर गया,
घर पहुँचा, बचा हुआ रोल टेबल
पर रखा, जूस निकालने के लिये
अपना मनपसंद काँच का गिलास
उठाया…  अरे  यह  क्या  गिलास
हाथ से फिसल कर टूट गया।

मैंने  हिसाब  लगाय  करीब - करीब
सत्तर में से साठ रूपय का नुकसान
हो चुका था, मैं बडा आश्चर्यचकित
था।

और अब सुनिये ये भगवान तो मेरे
पीछे ही पड गया जब कल शाम को सुभिक्षा  वाले  ने  मुझे  तीस रूपये
ज्याद दे दिये। मैंने अपनी धर्म-पत्नी
से पूछा क्या कहती हो एक ट्राई और
मारें।
उन्होने मुस्कुराते हुये कहा – जी नहीं,
और हमने पैसे वापस कर दिये। बाहर आकर हमारी धर्म-पत्नी जी ने कहा–
वैसे एक ट्राई और मारनी चाहिये थी।
कहना था  कि  उन्हें एक ठोकर लगी
और वह गिरते-गिरते बचीं।

मैं सोच में पड गया कि क्या वाकई
भगवान हमें देख रहा है।

हाँ भगवान हमें हर पल हर क्षण देख
रहा है, हम  बहुत  सी  जगह  पोस्टर
लगे देखते हैं आप  कैमरे की नजर में
हैं। पर याद  रखना हम हर  क्षण पल
प्रतिपल उसकी नजर में हैं।

वो हर पल गलत कार्य करने से पहले
और बाद में भी हमें आगाह करता है।
लेकिन यह समझना न समझना हमारे
विवेक पर निर्भर करता है।

मौत कैसे होती है ?


मौत का जब आक्रमण शुरू होता है तब पैरों की तरफ से प्राण ऊपर को खीचने लगते हैं ! उस समय बड़ा कष्ट होता है ! दिल की धड़कन बढ़ जाती है,चक्कर आने लगते हैं,स्वांस रुक-रुक कर चलती है ! दम घुटने लगता है और चिल्लाता पुकारता है ! यह क्रम कुछ देर तक चलता रहता है और प्राण खींचकर झटका दे देकर कमर तक का भाग त्याग देते हैं ! वह भाग शून्य हो जाता है,निर्जीव मुर्दा जैसा हो जाता है जैसा लकवा मार गया हो ! उसमे कोई हरकत नहीं होती !तब लोग कहने लगते हैं कि इधर की नब्ज छुट गयी ! इसी प्रकार प्राण खींचकर कंठ में रुक जाता है और कंठ से नीचे का भाग निर्जीव हो जाता है ! न वो हिल सकता है और न ही हरकत कर सकता है ! साथ ही जुबान भी निर्जीव होकर बंद हो जाती है और दम बुरी तरह घुटता है ! आँखों सेआंसू निकलने लगते हैं पर वो बता नहीं सकता कि क्या तकलीफ है ! पास के लोग सगे सम्बन्धी बेटे बेटी सब खडे-खडे देखते हैं और खुद भी रोते हैं पर समझ नहीं पाते कि क्या कष्ट हैं ! यह दशा बहुत देर तक रहती है !
फिर भयानक शक्ल यमदूत की उसे दिखाई देती है ! उसकी भयानक शक्ल देखकर आँखे फिरने लगती है ! वो बोलते हैं कि मकान खाली करो !उसकी भयानक आवाज सुनकर सिर फटने लगता है मानो हजारों गोला बारुदों की आवाज आ रही हो ! यह दशा बड़ी भयानक होती है और वही जान सकता है जिस पर बीतती है ! तब यमदूत एक फंदा फेंकते हैं और आत्मा को पकड़कर जोर का झटका देते हैं !उस समय आँखे उलट पुलट हो जाती है और उस कष्ट का वर्णन नहीं हो सकता ! यमदूत का लिंग शरीर होता है ! प्राणों को निकाल कर यमदूत घसीटते हुए ले जाते हैं और धर्मराय की कचहरी में पेश कर देते हैं जहाँ कर्मानुसार सजा सुनाई जाती है ! यह है मौत का दृश्य !
महात्मा इन दृश्यों को देखते रहते हैं और भूले जीवों को चेताते रहते हैं कि सम्भल जाओ होश में आ जाओ वर्ना एक दिन सबकी यही दशा होने वाली है ! जीव के सच्चे रक्षक संत सतगुरु होते हैं जो जीव को काल के दंड से बचा लेते हैं ! भज़न सिमरन कर सतगुरु का ध्यान करके इस कलयुग में बचा जा सकता है !!

दीन दयाल भरोसे तेरे , सब परिवार चढाया बेढे

दीन दयाल भरोसे तेरे ,
  सब परिवार चढाया बेढे

यह बानी कबीर जी की है कबीर जी परमात्मा के आगे अरदास करते है इस शबद मे शुरु मे आप कहे रहे – दीन दयाल दीन वो किसे कहते है ?

वो परमात्मा को दीन कह रहे हैं, हे दीन के दाते गरीबो के रखवाले  मै सब तेरे नाम पर सौप रहा हूँ ।

सब परिवार , परिवार वो अपने परिवार को नही कहे रहे वो परिवार अपने ईन्द्रीयो को बोल रहे है ।

पाँच ज्ञान ईन्द्रीय पाँच कर्म्रन्द्रीय एक मन उसे परिवार कहते हे ये जो शरीर है ये परिवार तेरे नाम के नौका पर चढाया है और सब तुझ पर सौपा है । आगे सब तुझे सभांल करनी है ।

मालिक , आगे समझाते हे प्रभु परमात्मा की भक्ती कैसी करनी है ?

इस लाईन मे उदाहरण देकर समझाते है

राम जपीयो जी ऐसे ऐसे
ध्रुव प्रहेलाद जपीयो हर जैसे 

हम सब को पता है भक्त प्रहलाद को अपने पिता ने कितना दुख दीया नाम जपने के लीये बंदी रखी थी तो भी उन्होने अपना प्रयास लक्ष नही त्यागा उन्होने इतनी वेदना होते हुये भी मालिक की भक्ती मे कोई कसर नही छोडी ऊनके पिता ने ऊनका अंत करने का भी प्रयास किया था पर वो डरे नही, वैसी  ही घटना ध्रुव के जीवन की थी ऊन्होने भी सबकुछ त्यागकर राजमहल छोडकर भक्ती मारग अपनाया था ।

तो कबीर जी कह रहे की भक्ती करनी है तो लोक लाज से भय मुक्त होकर भक्ती करो ।

आगे समझाते हैं 

जा तीस भावे ता हुकम मनावे
इस बेढे को पार लगाये

हम इस प्रकार की भक्ती करेगे तो ऐसे हुकम मे रहते हुये प्रभु भक्ती करेगे तो अवश्य ही वो परमात्मा हमारी जीवन की नैया को इस भवसागर से पार ले जाकर रहेगा ।

आगे समझाते हैं

गुरु परसाद ऐसी बुध समानी
चुक गई फिर आवन जानी 

बडा सुंदर इशारा दे रहे आपजी गुरु की दी हुई युक्ती शबद प्रसाद नाम भेद मे हमे हमारे मन बुध्दी के विकारो को समर्पीत करना है हमे पुरी तरह से गुरु हुकम से समरुप होना है ।

 इस प्रकार से हम गुरु ऊपदेश पर चलेगे तो भवसागर पार हो पायेगे हमे गुरू ने दीया हुवा रास्ता है वो रास्ते पर हमे बीना वीचार करते हुये चलना है ऐसे हम करेगे तो हमारा जनमो जनमो का सफर पूरा हो जाएगा

चुक गई फीर आवन जानी

हम इस आवागमन के चक्र से मुक्त होगे
इस लिये गुरु साहब की प्रेरणा लेते हुये हमै ऐसे हुकम मे रहेते हुये  भक्ती की और जोर देना है ।

आखरी मे समझाते हैं

कहो कबीर भज सारँग पानी 
ऊरवार पार सब एक दानी

अंत मे हमे और एक उदाहरण दे रहे है 
सारीग गुरुसाब हिरन को बोलते है जब धुप के दिन होते है तो जगलो मे हिरन पानी के लीये दिन भर ईधर ऊधर भागता रहता है पानी की तलाश मे पर अपना ऊदेश कभी नही छोडता वो पानी की प्यास बुजाने के लिये सारा दिन धुप लाट के पीछे पीछे पानी समझकर दौडता है क्यो की वो पानी का प्यासा होता है ।

वैसे गुरु साहब हमे समझाते है भक्ती करनी है प्रहलाद ध्रुव हिरन इनकी तरह की करो
गुरू प्यारी साध संगत जी सभी सतसंगी भाई बहनों और दोस्तों को हाथ जोड़ कर प्यार भरी राधा सवामी जी...

▪परमात्मा का शुक्र करें▪



                    लाहौर में लाहौरी और शाहआलमी दरवाजों के बाहर कभी एक बाग़ था। वहाँ एक फ़क़ीर था। उसके दोनों बाज़ू नहीं थे। उस बाग़ में मच्छर भी बहुत होते थे। मैंने कई बार  देखा उस फ़क़ीर को। आवाज़ देकर , माथा झुकाकर वह पैसा माँगता था। एक बार मैंने उस फ़क़ीर से पूछा - " पैसे तो माँग लेते हो , रोटी कैसे खाते हो ? "

उसने बताया - " जब शाम उतर आती है तो उस नानबाई को पुकारता हूँ , ' ओ जुम्मा ! आके पैसे ले जा , रोटियाँ दे जा। ' वह भीख के पैसे उठा ले जाता है , रोटियाँ दे जाता है। "

मैंने पूछा - " खाते कैसे हो बिना हाथों के ? "

वह बोला - " खुद तो खा नहीं सकता। आने-जानेवालों को आवाज़ देता हूँ ' ओ जानेवालों ! प्रभु तुम्हारे हाथ बनाए रखे , मेरे ऊपर दया करो ! रोटी खिला दो मुझे , मेरे हाथ नहीं हैं। ' हर कोई तो सुनता नहीं , लेकिन किसी-किसी को तरस आ जाता है। वह प्रभु का प्यारा मेरे पास आ बैठता है। ग्रास तोड़कर मेरे मुँह में डालता जाता है , मैं खा लेता हूँ। "
सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने पूछ लिया - " पानी कैसे पीते हो ? "

उसने बताया - " इस घड़े को टांग के सहारे झुका देता हूँ तो प्याला भर जाता है। तब पशुओं की तरह झुककर पानी पी लेता हूँ। "

मैंने कहा - " यहाँ मच्छर बहुत हैं। यदि माथे पर मच्छर लड़ जाए तो क्या करते हो ? "

वह बोला - " तब माथे को ज़मीन पर रगड़ता हूँ। कहीं और मच्छर काट ले तो पानी से निकली मछली की तरह लोटता और तड़पता हूँ। "

हाय ! केवल दो हाथ न होने से कितनी दुर्गति होती है !

अरे , इस शरीर की निंदा मत करो ! यह तो अनमोल रत्न है ! शरीर का हर अंग इतना कीमती है कि संसार का कोई भी खज़ाना उसका मोल नहीं चुका सकता। परन्तु यह भी तो सोचो कि यह शरीर मिला किस लिए है ? इसका हर अंग उपयोगी है। इनका उपयोग करो !

स्मरण रहे कि ये आँखे पापों को ढूँढने के लिए नहीं मिलीं। कान निंदा सुनने के लिए नहीं मिले। हाथ दूसरों का गला दबाने के लिए नहीं मिले। यह मन भी अहंकार में डूबने या मोह-माया में फसने को नहीं मिला।

ये आँख सच्चे सतगुरु की खोज के लिये मिली है,ये हाथ उसकी सेवा और आजीविका चलाने को मिले है। ये पैर उस रास्ते पर चलने को मिले है जो पूर्ण संत तक जाता हो। ये कान उस संदेश सुनने को मिले है जो जिसमे पूर्ण सतगुरु की पहचान बताई जाती हो। ये जिह्वा उस सतगुरु का गुण गान करने को मिली है जिसने आपको परमात्मा से मिलने की राह बताई हो। ये मन उस सतगुरु का लगातार शुक्र और सुमिरन करने को मिला है जिसने सही रास्ते पर डाल दिया है।

▪सतगुरु तेरा शुक्र है,शुक्र है..▪

एक दिन जब बाबा जी स्टेज पर आये तो बाबा जी क्या कहते है किर्पया ध्यान से सुनना

एक दिन बाबाजी स्टेज पर आए ओर बडे मनमोहक से चिरपरिचित अंदाज मे संगत से राधास्वामी की ओर गद्दी ( कुर्सी) पर विराजमान हुए दृष्टि संगत पर डाली...