एक दिन बाबाजी स्टेज पर आए ओर बडे मनमोहक से चिरपरिचित अंदाज मे संगत से राधास्वामी की ओर गद्दी ( कुर्सी) पर विराजमान हुए दृष्टि संगत पर डाली ।
बाबाजी ने फरमाया कि जी की ( विश्वास पर हम आज बात करते है। कि हम सभी को संतमत पर अपने कामिल मुर्शिद पर सतगुरु पर विश्वास है । कितने लोग है जिन्हे अपने सतगुरु पर विश्वास है। जिन्हे है उनको मुबारक है। भाई अगर विश्वास नही रखोगे तो रिश्ता कैसै जुड़ेगा उस मालिक से ओर रिश्ता जुड़ेगा भजन सिमरन से।
सतगुरु का हुकुम एक ही है वो है भजन सिमरन ।लोग ब्यास आते है लेकिन सत्संग कोई सुनता नही । यहां आकर स्नेक बार , काफी शाप, लस्सी पीने सोने बस जी हो गई कार्यवाही जी।
(सबसे दिल को लगने वाली बात)
कभी किसी ने ये पुछने की जेहमत नही उठाई कि मत्था किसे टेकता हूं।
मे मत्था टेकता हूं अपनी संगत को।
लोग आगे पीछे के चक्कर मे रहते है क्या आगे क्या पीछे बैठना ।
प्यार ओर विश्वास होना चाहिए जी मालिक सब जानता है जी।
यहां कोई आपकी हाजरी नही लगवानी न कार्यवाही देखनी है जी।
मालिक आपसे क्या मांगता है थोडा सा वक्त ही न हम वो नही दे सकते।
कोई रिश्ता निभाने के लिए वक्त देना पडता है।जैसे पति पत्नि का अगर एक दुसरे को वक्त ओर ध्यान नहीं देगे।मां बाप बच्चो को तो क्या रिश्ता निभ पाएगा । जी बिलकुल नही वक्त ओर ध्यान देना पडता है।
हुकम पर बाबाजी ने फरमाया की जी आप बोलते है जी तन मन धन से आपकी सेवा करेगें जी। मन दे नही सकते वो कही ओर ही है।
सरदार बहादुर जी की साखी का जिक्र किया कि जी उनके कमरे मेे फोटो टांगनी थी लेकिन उनको उपर चढ़ने के लिए स्टूल नही मिल रहा था सो हुजुर ने फरमाया कि जी मंझी ( पलंग) पर चढ़कर टांग लो जी।
तो सेवादार कहीं से स्टुल ले आया उसपे चढकर टांग ली ओर हुजूर से अर्ज की कि जी में आपकी मंझी पे कैसे पैर रख सकता हूं।
तो हुजूर ने फरमाया कि मंझी पर नही पर जुबान पर तो पेर रख दिया।
हुकुम जी हुकुम
बाबाजी ने फरमाया इतनी दूर से यहां सिर्फ कार्यवाही करने आते है।
यहां सत्संग सुनने कोन आता है।कोई व्यापार मै तो कोई परिवार मे तो कोई 10 मिनट बाद सो जाता है । कोई विरला ही पूरा सत्संग सुनता है।
हम उस मालिक से प्यार भी गर्ज से करते है। अपनी मंगे रख के बैठ जाते है। उसमे भी शर्तै ये नही ,ऐसे नही वैसे चाहिए
आप भजन सिमरन करो उस पर विश्वास रखकर देखो जी फिर वो आप ही सब कारज संवारेगा जी।
फिर फरमाते है थोडा वक्त दो ,बाकि सब वो देख लेगा जी।पर ईंसान पर थोड़े ही संकट तकलीफे आती है वो डोलने लगता है।अपने सतगुरु पर विश्वास नही रखता।
अपने गुरु के हुकुम को ताक पर रखकर भर्मो भुलावो में पड़कर मंदिरो, गुरुद्वारो मे मत्थै टेकना , रिद्धियो सिद्धीयो मे पड़ जाता है।
ये दुख तकलीफे आती जाती रहती है । इनसे अपने विश्वास को न डोलने दे उस मालिक पर पुरा विश्वास रखे।
वही विश्वास आपकी भजन सिमरन मे मदद करता है ।इससे उस मालिक से रिश्ता भी कायम रहेगा ।
इंसान पर इतनी बक्शिश हुई है ये इंसानी जामा मिला है। फिर उस मुर्शिद ने "नाम दान" की बक्शिश की जी। पर इंसान इतना नाशुक्रा है कि जानवर भी उससे अच्छे है। जिस थाली मे खाता है उसी मे छेद करता है । इतना सब मिला है फिर भी उसका शुक्र नही करता है।हुजुर ने इतनी दया की है ।पहले पानी दुर से लाना पडता था।सहुलियते काफी है हो गई है सराय ,कमरे ,पंखे ,कुलर सभी है पर फिर भी बोलते है गर्मी है ,शुकर की कोई बात ही नही उसमे भी मीन मैंख निकालते है,पहले ये सोचे क्या इन सबके लायक है जी हम सब।
फिर भजन सिमरन पर जोर देकर फरमाते है कि जी ये बातो का मजमुन नही है, करनी का मार्ग है, करनी से ही होगा ।
दुख तकलीफे शरीर को होती है आत्मा को नही जी। अपना दायरा शरीर तक सीमित न रखे जी ।
हमे इन सब से उपर उठकर भक्ति करना है।
आज से अभी से भजन सिमरन शुरू करे जी अभी भी कोई समय नही निकला है जी
यही मुक्ति का मार्ग है ।
इसे भजन सिमरन द्वारा ही तय करना पडेगा।
बाबाजी ने कहा कि क्या हमे बडे महाराज जी की बाते याद है उनका हुकुम क्या था। बस ब्यास आ जाना ही मकसद नही उनकी बातो पर अमल भी करना चाहिए।
बाबाजी ने फरमाया कि आप जी को क्या कहा गया है कि जी आप आराम से अपनी जिंदगी गुजारते हुए । 2.30 धंटे भजन सिमरन करना है।उनका यही हुकुम है । वो ये भी तो बोल सकते थे कि जी घर बार छोड़ के त्यागी बनके भक्ति करो।
आज बाबाजी कुछ नाराज कुछ प्यार वाली बाते की ।उन्होने कहा कि सच्चे सिख का क्या धर्म है ।सिर्फ तलवार रखना नही।
सच्चे हिंदु का धर्म सिर्फ टीका या जटाए रखना नही है।
पहले सच्चे इंसान बनो ।
वो मालिक आपके कर्म देखेगा।जमीने जायदादे नही पुछेगा।फिर उन्होने कहा मेरी संगत की कोई बात ही नही जी।
अगर आज हुकुम कर दे कि ये सेवा करनी है लाखो संगत जमा हो जाएगी।
(हल्की मुस्कान के साथ)
तो जब बाहरी सेवा के लिए रात क्या दिन क्या नही देखते तो फिर भाई अंदर की सेवा के लिए वक्त निकालो भाई इसमे आपका ही फायदा है जी।
सिर्फ भजन सिमरन से ही होगा जो होगा ।
सच मे हमारे सतगुरु ने हमसे मांगा ही क्या है ।2.30 घंटे बस जी फिर वो हमारे कारज स्वार्थ ओर परमार्थ दोनो ही संवारने का वायदा करते है ।पर पहले हमे भी अपना किया वादा निभाना है जी।
आईये हम सभी अपने सतगुरु की खुशी हासिल करे भजन सिमरन करके जी
जितना मे सुन समझ पाया और समझ सका उतना ही भेज रहा हूं जी।।