Thursday, November 15, 2018

एक दिन जब बाबा जी स्टेज पर आये तो बाबा जी क्या कहते है किर्पया ध्यान से सुनना

एक दिन बाबाजी स्टेज पर आए ओर बडे मनमोहक से चिरपरिचित अंदाज मे संगत से राधास्वामी की ओर गद्दी ( कुर्सी) पर विराजमान हुए दृष्टि संगत पर डाली ।

बाबाजी ने फरमाया कि जी की ( विश्वास पर हम आज बात करते है। कि हम सभी को संतमत पर अपने कामिल मुर्शिद पर  सतगुरु पर विश्वास है । कितने लोग है जिन्हे अपने सतगुरु पर विश्वास है। जिन्हे है उनको मुबारक है। भाई अगर विश्वास नही रखोगे तो रिश्ता कैसै जुड़ेगा उस मालिक से ओर रिश्ता जुड़ेगा भजन सिमरन से।

               सतगुरु का हुकुम एक ही है वो है भजन सिमरन ।लोग ब्यास आते है लेकिन सत्संग कोई सुनता नही । यहां आकर स्नेक बार , काफी शाप, लस्सी पीने सोने बस जी हो गई कार्यवाही जी।

(सबसे दिल को लगने वाली बात)

              कभी किसी ने ये पुछने की जेहमत नही उठाई कि मत्था किसे टेकता हूं।
मे मत्था टेकता हूं अपनी संगत को।

                  लोग आगे पीछे के चक्कर मे रहते है क्या आगे क्या पीछे बैठना ।
प्यार ओर विश्वास होना चाहिए जी मालिक सब जानता है जी।
यहां कोई आपकी हाजरी नही लगवानी न कार्यवाही देखनी है जी।

              मालिक आपसे क्या मांगता है थोडा सा वक्त ही न हम वो नही दे सकते।
कोई रिश्ता निभाने के लिए वक्त देना पडता है।जैसे पति पत्नि का अगर एक दुसरे को वक्त ओर ध्यान नहीं देगे।मां बाप बच्चो को तो क्या रिश्ता निभ पाएगा । जी बिलकुल नही वक्त ओर ध्यान देना पडता है।

               हुकम पर बाबाजी ने फरमाया की जी आप बोलते है जी तन मन धन से आपकी सेवा करेगें जी। मन दे नही सकते वो कही ओर ही है।

              सरदार बहादुर जी की साखी का जिक्र किया कि जी उनके कमरे मेे फोटो टांगनी थी लेकिन उनको उपर चढ़ने के लिए स्टूल नही मिल रहा था सो हुजुर ने फरमाया कि जी मंझी ( पलंग) पर चढ़कर  टांग लो जी।

तो सेवादार कहीं से स्टुल ले आया उसपे चढकर टांग ली ओर हुजूर  से अर्ज की कि जी में  आपकी मंझी पे कैसे पैर रख सकता हूं।

          तो हुजूर ने फरमाया कि मंझी पर नही पर जुबान पर तो पेर रख दिया।

           हुकुम जी हुकुम

बाबाजी ने फरमाया इतनी दूर से यहां सिर्फ कार्यवाही करने आते है।

            यहां सत्संग सुनने कोन आता है।कोई व्यापार मै तो कोई परिवार मे तो कोई 10 मिनट बाद सो जाता है । कोई विरला ही पूरा सत्संग सुनता है।

हम उस मालिक से प्यार भी गर्ज से करते है। अपनी मंगे रख के बैठ जाते है। उसमे भी शर्तै ये नही ,ऐसे नही वैसे चाहिए
              आप भजन सिमरन करो उस पर विश्वास रखकर देखो जी फिर वो आप ही सब कारज संवारेगा जी।

फिर फरमाते है थोडा वक्त दो ,बाकि सब वो देख लेगा जी।पर ईंसान पर थोड़े ही संकट तकलीफे आती है वो डोलने लगता है।अपने सतगुरु पर विश्वास नही रखता।
अपने गुरु के हुकुम को ताक पर रखकर भर्मो भुलावो में  पड़कर मंदिरो, गुरुद्वारो मे मत्थै टेकना , रिद्धियो सिद्धीयो मे पड़ जाता है।
ये दुख तकलीफे आती जाती रहती है । इनसे अपने विश्वास को न डोलने दे उस मालिक पर पुरा विश्वास रखे।
वही विश्वास आपकी भजन सिमरन मे मदद करता है ।इससे उस मालिक से रिश्ता भी कायम रहेगा ।
इंसान पर इतनी बक्शिश हुई है ये इंसानी जामा मिला है। फिर उस मुर्शिद ने "नाम दान" की बक्शिश की जी। पर इंसान इतना नाशुक्रा है कि जानवर भी उससे अच्छे है। जिस थाली मे खाता है उसी मे छेद करता है । इतना सब मिला है फिर भी उसका शुक्र नही करता है।हुजुर ने इतनी दया की है ।पहले पानी दुर से लाना पडता था।सहुलियते काफी है हो गई है  सराय ,कमरे ,पंखे ,कुलर सभी है पर फिर भी बोलते है गर्मी है ,शुकर की कोई बात ही नही उसमे भी मीन मैंख निकालते है,पहले ये सोचे क्या इन सबके लायक है जी हम सब।

फिर भजन सिमरन पर जोर देकर फरमाते है कि जी ये बातो का मजमुन नही है, करनी का मार्ग है, करनी से ही होगा ।
दुख तकलीफे शरीर को होती है आत्मा को नही जी। अपना दायरा शरीर तक सीमित न रखे जी ।
हमे इन सब से उपर उठकर भक्ति करना है।
आज से अभी से भजन सिमरन शुरू करे जी अभी भी कोई समय नही निकला है जी

यही मुक्ति का मार्ग है ।
इसे भजन सिमरन द्वारा ही तय करना पडेगा।
बाबाजी ने कहा कि क्या हमे बडे महाराज जी की बाते याद है उनका हुकुम क्या था। बस ब्यास आ जाना ही मकसद नही उनकी बातो पर अमल भी करना चाहिए।
बाबाजी ने फरमाया कि आप जी को क्या कहा गया है कि जी आप आराम से अपनी जिंदगी गुजारते हुए । 2.30 धंटे भजन सिमरन करना है।उनका यही हुकुम है । वो ये भी तो बोल सकते थे कि जी घर बार छोड़ के त्यागी बनके भक्ति करो।

             आज बाबाजी कुछ नाराज कुछ प्यार वाली बाते की ।उन्होने कहा कि सच्चे सिख का क्या धर्म है ।सिर्फ तलवार रखना नही।
सच्चे हिंदु का धर्म सिर्फ टीका या जटाए रखना नही है।
 पहले सच्चे इंसान बनो ।
वो मालिक आपके कर्म देखेगा।जमीने जायदादे नही पुछेगा।फिर उन्होने कहा मेरी संगत की कोई बात ही नही जी।
अगर आज हुकुम कर दे कि ये सेवा करनी है लाखो संगत जमा हो जाएगी।

 (हल्की मुस्कान के साथ)

तो जब बाहरी सेवा के लिए रात क्या दिन क्या नही देखते तो फिर भाई अंदर की सेवा के लिए वक्त निकालो भाई इसमे आपका ही फायदा है जी।

सिर्फ भजन सिमरन से ही होगा जो होगा ।
सच मे  हमारे सतगुरु ने हमसे मांगा ही क्या है ।2.30 घंटे बस जी फिर वो हमारे कारज स्वार्थ ओर परमार्थ दोनो ही संवारने का वायदा करते है ।पर पहले हमे भी अपना किया वादा निभाना है जी।

आईये हम सभी अपने सतगुरु की खुशी हासिल करे भजन सिमरन करके जी
जितना मे सुन समझ पाया और समझ सका उतना ही भेज रहा हूं जी।।

सतगुरु अक्सरअपने सत्संग में फरमाते हैं कि - Attachment Causes Detachment



Attachment Causes Detachment

इस बात को रहीम जी ने भी कितने साफ़ और सुन्दर लफ्जो में कहा हैं कि - रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ी चटकाय। जोड़ी से फिर न जुड़े, जुड़े गाठ पर जाये।।

फरमाते हैं कि -"रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ी चटकाय" .

मालिक से प्यार का रिश्ता एक प्रेम रूपी धागे की तरह हैं जिसे कभी सपने में भी तोड़ने की भूल नही करनी चाहिए लेकिन हम नादान लोग तो उस रिश्ते को हक़ीक़त में भूलने को तैयार रहते हैं। इन दुनियावी रिस्तो की दलदल में फंस कर उस मालिक से प्यार के रिश्ते को नही भूलना चाहिए। क्युकी अगर दुनिया में कोई एक भी रिश्ता सच्चा हैं हैं तो वो उस कुल मालिक का रिश्ता हैं। वो सच्चे परमात्मा का रिश्ता हैं। जो परमात्मा हर पल साँसों सास हमारे साथ रहता हैं। जो एक पल के लिए भी हमें खुद से अलग नही करता और जो हमारे साथ हमेशा रहता हैं। जीते जी भी और मरने के बाद भी। तो कैसे हम उसकी दी पनाह को इन दुनियावी दिखावे से भूल सकते हैं। कभी नही। आगे रहीम जी फरमाते हैं। कि

जोड़ी से फिर न जुड़े, जुड़े गाठ पर जाये।।

कितना सही बयां किया हैं। जैसे धागा अगर एक बार टूट जाता हैं फिर अगर आप किसी तरह से हां ना करके अगर उसे जोड़ भी लेते हो तो वो पहले जैसी बात नही आती हैं क्युकी उस सीधी डोरी में एक गाठ पड़ जाती हैं। वही हाल कुछ परमार्थ का हैं। अगर परमात्मा को सिर्फ आप दिखावा करोगे तो प्यार कभी पूरा नही पा सकते। कही न कही प्यार में कमी दिखती ही रहेगी। और वही से सुख दुःख होने शुरू हो जाते हैं। क्युकी रिस्ता हमेशा उसी के साथ बनता हैं जिस से हम प्यार से रिश्ता बनाना चाहते हैं। और प्यार के साथ रिश्ते की सबसे बड़े कड़ी होती हैं उस रिश्ते को बनाये रखने के लिए समय देना। रिश्ते तो हम मालिक से चाहते हैं लेकिन हम उस रिश्ते को निभाने के लिए हमारे पास समय ही नही हैं तो फिर सभी लोग अच्छे से जानते हैं वो रिश्ता कितना पक्का बन सकता हैं।

Wednesday, November 14, 2018

Beautiful Saakhi - एक सज्जन थे जिन्होंने महाराज जी से नाम दान लिया हुआ था



एक सज्जन थे जिन्होंने महाराज जी से नाम दान लिया हुआ था
वह नई दिल्ली में एक निजी कंपनी में ड्राइवर थे, उनका काम था कि वह रोज़ कंपनी की गाड़ी में कनाट प्लेस किसी बैंक में जाते थे और उनके साथ कंपनी का कैशियर भी होता था

एक दफा जब वह कनाट प्लेस के ‘कॉफी हाउस’ के नजदीक से गुजर रहे थे तो उन्होंने वहां महाराज जी की गाड़ी खड़ी देखी और पास ही महाराज जी का ड्राइवर भी था लेकिन उनको महाराज जी कहीं नज़र नहीं आये फिर वह सोचने लगे की हो न हो महाराज जी भी जरुर आस-पास गए हैं तो उनके मन में दर्शनों की तड़प उठने लगी वो बहुत ही बेचैन हो गए लेकिन समस्या यह थी की वोह उस समय कंपनी की ड्यूटी पर थे

अब मन ही मन सोचने लगे की क्या किया जाये तभी उनके मन में विचार आया की चलो मैं इस कैशियर से झूठ बोल देता हूँ की मुझे उस गाड़ी के मालिक से पांच सौ रूपए लेने है जो की उसने मुझसे पकिस्तान में उधार लिए थे लेकिन फिर मन में सोचता है कि कहीं मेरे झूठ बोलने से मेरा मालिक मुझ से नाराज न हो जाये इसलिए वो मन में महाराज जी से झूठ बोलने के लिए माफी मांगने लगे, अब प्रार्थना करने के बाद उन्होंने उस कैशियर से बिलकुल वैसा ही बोला जैसा मन में सोचा था, कैशियर जो था वो रुपयों के लेन देन में बहुत चुस्त था इसलिए तुंरत मान गया और बोला की तुम जाओ और अपने पैसे ले लो मैं गाड़ी खुद ही ले जाऊंगा

इतना सुनकर वो सज्जन तुंरत गाडी से उतर गए और महाराज जी की गाडी के पास चले गए महाराज जी का जो ड्राइवर था वो इन सज्जन का जानकार निकला इन्होने उसको पूछा की महाराज जी कहाँ हैं तो ड्राइवर ने कहा की भाई महाराज जी, महारानी साहिबा और महाराज जी के भाई साहेब जी इस ‘कॉफी हाउस’ में ‘कॉफी’ पीने के लिए गए हुए हैं | अभी आने वाले ही होंगे, वो दोनों अभी बातें ही कर रहे थे कि महाराज जी बाहर आ गए, उस सज्जन की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा और वो अपनी भावनाओं को दबा कर धीरे-धीरे रोने लगे और मन में सोचने लगे की मैंने दर्शन तो कर ही लिए हैं अब मैं महाराज जी के बीच में क्यूँ आऊ इसलिए थोडा पीछे को जाने लगे कि तभी महाराज जी ने आवाज दे कर कहा : “भाई तू अपने पांच सौ रूपए तो लेता जा जो मैंने तुझ से पाकिस्तान में लिए थे” इतना सुनते ही वो फूट-फूट कर रोने लगे और जब तक महाराज जी चले नहीं गए तब तक ऐसे ही रोते रहे
हमारे सतगुरु जानी जान हैं, उनसे कुछ नहीं छिपता            

क्या भगवान हमें देख रहे है ?



हमारे घर के पास एक डेरी वाला है. वह
डेरी वाला एसा है कि आधा किलो घी में
अगर घी 502 ग्राम तुल गया तो 2 ग्राम
घी निकाल लेता था।

एक बार मैं आधा किलो घी लेने गया. उसने मुझे 90 रूपय ज्यादा दे दिये ।
मैंने कुछ  देर  सोचा और  पैसे  लेकर
निकल लिया। मैंने  मन में  सोचा  कि
2-2 ग्राम  से तूने  जितना  बचाया था
बच्चू अब एक ही दिन में निकल गया।
मैंने घर आकर  अपनी  गृहल्क्षमी  को
कुछ नहीं बताया और घी दे दिया।

उसने जैसे ही घी  डब्बे में पलटा आधा
घी बिखर गया, मुझे झट से “बेटा चोरी
का  माल मोरी में”  वाली  कहावत  याद
आ गयी,  और साहब यकीन मानीये वो
घी किचन की सिंक में ही गिरा था।

इस वाकये को कई महीने बीत गये थे। परसों  शाम को मैं  वेज रोल  लेने गया,
 उसने भी  मुझे  सत्तर रूपय  ज्याद  दे
दिये,  मैंने मन ही मन सोचा  चलो बेटा
आज फिर चैक करते हैं की क्या वाकई भगवान हमें  देखता  है। मैंने रोल पैक
कराये और पैसे लेकर निकल लिया।


आश्चर्य तब हुआ जब एक रोल
अचानक रास्ते में  ही गिर गया,
घर पहुँचा, बचा हुआ रोल टेबल
पर रखा, जूस निकालने के लिये
अपना मनपसंद काँच का गिलास
उठाया…  अरे  यह  क्या  गिलास
हाथ से फिसल कर टूट गया।

मैंने  हिसाब  लगाय  करीब - करीब
सत्तर में से साठ रूपय का नुकसान
हो चुका था, मैं बडा आश्चर्यचकित
था।

और अब सुनिये ये भगवान तो मेरे
पीछे ही पड गया जब कल शाम को सुभिक्षा  वाले  ने  मुझे  तीस रूपये
ज्याद दे दिये। मैंने अपनी धर्म-पत्नी
से पूछा क्या कहती हो एक ट्राई और
मारें।
उन्होने मुस्कुराते हुये कहा – जी नहीं,
और हमने पैसे वापस कर दिये। बाहर आकर हमारी धर्म-पत्नी जी ने कहा–
वैसे एक ट्राई और मारनी चाहिये थी।
कहना था  कि  उन्हें एक ठोकर लगी
और वह गिरते-गिरते बचीं।

मैं सोच में पड गया कि क्या वाकई
भगवान हमें देख रहा है।

हाँ भगवान हमें हर पल हर क्षण देख
रहा है, हम  बहुत  सी  जगह  पोस्टर
लगे देखते हैं आप  कैमरे की नजर में
हैं। पर याद  रखना हम हर  क्षण पल
प्रतिपल उसकी नजर में हैं।

वो हर पल गलत कार्य करने से पहले
और बाद में भी हमें आगाह करता है।
लेकिन यह समझना न समझना हमारे
विवेक पर निर्भर करता है।

मौत कैसे होती है ?


मौत का जब आक्रमण शुरू होता है तब पैरों की तरफ से प्राण ऊपर को खीचने लगते हैं ! उस समय बड़ा कष्ट होता है ! दिल की धड़कन बढ़ जाती है,चक्कर आने लगते हैं,स्वांस रुक-रुक कर चलती है ! दम घुटने लगता है और चिल्लाता पुकारता है ! यह क्रम कुछ देर तक चलता रहता है और प्राण खींचकर झटका दे देकर कमर तक का भाग त्याग देते हैं ! वह भाग शून्य हो जाता है,निर्जीव मुर्दा जैसा हो जाता है जैसा लकवा मार गया हो ! उसमे कोई हरकत नहीं होती !तब लोग कहने लगते हैं कि इधर की नब्ज छुट गयी ! इसी प्रकार प्राण खींचकर कंठ में रुक जाता है और कंठ से नीचे का भाग निर्जीव हो जाता है ! न वो हिल सकता है और न ही हरकत कर सकता है ! साथ ही जुबान भी निर्जीव होकर बंद हो जाती है और दम बुरी तरह घुटता है ! आँखों सेआंसू निकलने लगते हैं पर वो बता नहीं सकता कि क्या तकलीफ है ! पास के लोग सगे सम्बन्धी बेटे बेटी सब खडे-खडे देखते हैं और खुद भी रोते हैं पर समझ नहीं पाते कि क्या कष्ट हैं ! यह दशा बहुत देर तक रहती है !
फिर भयानक शक्ल यमदूत की उसे दिखाई देती है ! उसकी भयानक शक्ल देखकर आँखे फिरने लगती है ! वो बोलते हैं कि मकान खाली करो !उसकी भयानक आवाज सुनकर सिर फटने लगता है मानो हजारों गोला बारुदों की आवाज आ रही हो ! यह दशा बड़ी भयानक होती है और वही जान सकता है जिस पर बीतती है ! तब यमदूत एक फंदा फेंकते हैं और आत्मा को पकड़कर जोर का झटका देते हैं !उस समय आँखे उलट पुलट हो जाती है और उस कष्ट का वर्णन नहीं हो सकता ! यमदूत का लिंग शरीर होता है ! प्राणों को निकाल कर यमदूत घसीटते हुए ले जाते हैं और धर्मराय की कचहरी में पेश कर देते हैं जहाँ कर्मानुसार सजा सुनाई जाती है ! यह है मौत का दृश्य !
महात्मा इन दृश्यों को देखते रहते हैं और भूले जीवों को चेताते रहते हैं कि सम्भल जाओ होश में आ जाओ वर्ना एक दिन सबकी यही दशा होने वाली है ! जीव के सच्चे रक्षक संत सतगुरु होते हैं जो जीव को काल के दंड से बचा लेते हैं ! भज़न सिमरन कर सतगुरु का ध्यान करके इस कलयुग में बचा जा सकता है !!

दीन दयाल भरोसे तेरे , सब परिवार चढाया बेढे

दीन दयाल भरोसे तेरे ,
  सब परिवार चढाया बेढे

यह बानी कबीर जी की है कबीर जी परमात्मा के आगे अरदास करते है इस शबद मे शुरु मे आप कहे रहे – दीन दयाल दीन वो किसे कहते है ?

वो परमात्मा को दीन कह रहे हैं, हे दीन के दाते गरीबो के रखवाले  मै सब तेरे नाम पर सौप रहा हूँ ।

सब परिवार , परिवार वो अपने परिवार को नही कहे रहे वो परिवार अपने ईन्द्रीयो को बोल रहे है ।

पाँच ज्ञान ईन्द्रीय पाँच कर्म्रन्द्रीय एक मन उसे परिवार कहते हे ये जो शरीर है ये परिवार तेरे नाम के नौका पर चढाया है और सब तुझ पर सौपा है । आगे सब तुझे सभांल करनी है ।

मालिक , आगे समझाते हे प्रभु परमात्मा की भक्ती कैसी करनी है ?

इस लाईन मे उदाहरण देकर समझाते है

राम जपीयो जी ऐसे ऐसे
ध्रुव प्रहेलाद जपीयो हर जैसे 

हम सब को पता है भक्त प्रहलाद को अपने पिता ने कितना दुख दीया नाम जपने के लीये बंदी रखी थी तो भी उन्होने अपना प्रयास लक्ष नही त्यागा उन्होने इतनी वेदना होते हुये भी मालिक की भक्ती मे कोई कसर नही छोडी ऊनके पिता ने ऊनका अंत करने का भी प्रयास किया था पर वो डरे नही, वैसी  ही घटना ध्रुव के जीवन की थी ऊन्होने भी सबकुछ त्यागकर राजमहल छोडकर भक्ती मारग अपनाया था ।

तो कबीर जी कह रहे की भक्ती करनी है तो लोक लाज से भय मुक्त होकर भक्ती करो ।

आगे समझाते हैं 

जा तीस भावे ता हुकम मनावे
इस बेढे को पार लगाये

हम इस प्रकार की भक्ती करेगे तो ऐसे हुकम मे रहते हुये प्रभु भक्ती करेगे तो अवश्य ही वो परमात्मा हमारी जीवन की नैया को इस भवसागर से पार ले जाकर रहेगा ।

आगे समझाते हैं

गुरु परसाद ऐसी बुध समानी
चुक गई फिर आवन जानी 

बडा सुंदर इशारा दे रहे आपजी गुरु की दी हुई युक्ती शबद प्रसाद नाम भेद मे हमे हमारे मन बुध्दी के विकारो को समर्पीत करना है हमे पुरी तरह से गुरु हुकम से समरुप होना है ।

 इस प्रकार से हम गुरु ऊपदेश पर चलेगे तो भवसागर पार हो पायेगे हमे गुरू ने दीया हुवा रास्ता है वो रास्ते पर हमे बीना वीचार करते हुये चलना है ऐसे हम करेगे तो हमारा जनमो जनमो का सफर पूरा हो जाएगा

चुक गई फीर आवन जानी

हम इस आवागमन के चक्र से मुक्त होगे
इस लिये गुरु साहब की प्रेरणा लेते हुये हमै ऐसे हुकम मे रहेते हुये  भक्ती की और जोर देना है ।

आखरी मे समझाते हैं

कहो कबीर भज सारँग पानी 
ऊरवार पार सब एक दानी

अंत मे हमे और एक उदाहरण दे रहे है 
सारीग गुरुसाब हिरन को बोलते है जब धुप के दिन होते है तो जगलो मे हिरन पानी के लीये दिन भर ईधर ऊधर भागता रहता है पानी की तलाश मे पर अपना ऊदेश कभी नही छोडता वो पानी की प्यास बुजाने के लिये सारा दिन धुप लाट के पीछे पीछे पानी समझकर दौडता है क्यो की वो पानी का प्यासा होता है ।

वैसे गुरु साहब हमे समझाते है भक्ती करनी है प्रहलाद ध्रुव हिरन इनकी तरह की करो
गुरू प्यारी साध संगत जी सभी सतसंगी भाई बहनों और दोस्तों को हाथ जोड़ कर प्यार भरी राधा सवामी जी...

▪परमात्मा का शुक्र करें▪



                    लाहौर में लाहौरी और शाहआलमी दरवाजों के बाहर कभी एक बाग़ था। वहाँ एक फ़क़ीर था। उसके दोनों बाज़ू नहीं थे। उस बाग़ में मच्छर भी बहुत होते थे। मैंने कई बार  देखा उस फ़क़ीर को। आवाज़ देकर , माथा झुकाकर वह पैसा माँगता था। एक बार मैंने उस फ़क़ीर से पूछा - " पैसे तो माँग लेते हो , रोटी कैसे खाते हो ? "

उसने बताया - " जब शाम उतर आती है तो उस नानबाई को पुकारता हूँ , ' ओ जुम्मा ! आके पैसे ले जा , रोटियाँ दे जा। ' वह भीख के पैसे उठा ले जाता है , रोटियाँ दे जाता है। "

मैंने पूछा - " खाते कैसे हो बिना हाथों के ? "

वह बोला - " खुद तो खा नहीं सकता। आने-जानेवालों को आवाज़ देता हूँ ' ओ जानेवालों ! प्रभु तुम्हारे हाथ बनाए रखे , मेरे ऊपर दया करो ! रोटी खिला दो मुझे , मेरे हाथ नहीं हैं। ' हर कोई तो सुनता नहीं , लेकिन किसी-किसी को तरस आ जाता है। वह प्रभु का प्यारा मेरे पास आ बैठता है। ग्रास तोड़कर मेरे मुँह में डालता जाता है , मैं खा लेता हूँ। "
सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने पूछ लिया - " पानी कैसे पीते हो ? "

उसने बताया - " इस घड़े को टांग के सहारे झुका देता हूँ तो प्याला भर जाता है। तब पशुओं की तरह झुककर पानी पी लेता हूँ। "

मैंने कहा - " यहाँ मच्छर बहुत हैं। यदि माथे पर मच्छर लड़ जाए तो क्या करते हो ? "

वह बोला - " तब माथे को ज़मीन पर रगड़ता हूँ। कहीं और मच्छर काट ले तो पानी से निकली मछली की तरह लोटता और तड़पता हूँ। "

हाय ! केवल दो हाथ न होने से कितनी दुर्गति होती है !

अरे , इस शरीर की निंदा मत करो ! यह तो अनमोल रत्न है ! शरीर का हर अंग इतना कीमती है कि संसार का कोई भी खज़ाना उसका मोल नहीं चुका सकता। परन्तु यह भी तो सोचो कि यह शरीर मिला किस लिए है ? इसका हर अंग उपयोगी है। इनका उपयोग करो !

स्मरण रहे कि ये आँखे पापों को ढूँढने के लिए नहीं मिलीं। कान निंदा सुनने के लिए नहीं मिले। हाथ दूसरों का गला दबाने के लिए नहीं मिले। यह मन भी अहंकार में डूबने या मोह-माया में फसने को नहीं मिला।

ये आँख सच्चे सतगुरु की खोज के लिये मिली है,ये हाथ उसकी सेवा और आजीविका चलाने को मिले है। ये पैर उस रास्ते पर चलने को मिले है जो पूर्ण संत तक जाता हो। ये कान उस संदेश सुनने को मिले है जो जिसमे पूर्ण सतगुरु की पहचान बताई जाती हो। ये जिह्वा उस सतगुरु का गुण गान करने को मिली है जिसने आपको परमात्मा से मिलने की राह बताई हो। ये मन उस सतगुरु का लगातार शुक्र और सुमिरन करने को मिला है जिसने सही रास्ते पर डाल दिया है।

▪सतगुरु तेरा शुक्र है,शुक्र है..▪

कबीर जी ने लिखा है कि-



"चींटी के पग नूपुर बाजे"

एक चींटी कितनी छोटी होती है, अगर उसके पैरों में भी घुंघरू बाँध दे तो उसकी आवाज को भी भगवान सुनते है। यदि आपको लगता है, कि आपकी पुकार भगवान नहीं सुन रहे तो ये आपका वहम है या फिर आपने भगवान के स्वभाव को नहीं जाना।

कभी प्रेम से उनको पुकारो तो सही, कभी उनकी याद में आंसू गिराओ तो सही। फिर एहसास होगा कि केवल भगवान ही है जो बात को सुनते है।

एक छोटी सी कथा संत बताते है:

एक भगवान के भक्त हुए , उन्होंने 20 साल तक लगातार पाठ किया। अंत में भगवान ने उनकी परीक्षा लेते हुए कहा, अरे भक्त! तू सोचता है की मैं तेरे पाठ से खुश हूँ, तो ये तेरा वहम है।
मैं तेरे पाठ से बिलकुल भी प्रसन्न नही हुआ।
जैसे ही भक्त ने सुना तो वो नाचने लगा, और झूमने लगा।
भगवान ने बोला, अरे! मैंने कहा कि मैं तेरे पाठ करने से खुश नही हूँ और तू नाच रहा है।
वो भक्त बोला, भगवन आप खुश हो या नहीं हो ये बात मैं नही जानता।
लेकिन मैं तो इसलिए खुश हूँ, कि आपने मेरा पाठ कम से कम सुना तो सही, इसलिए मैं नाच रहा हूँ।

ये होता है भाव।

थोड़ा सोचिये,विचार कीजिए

जब भी भगवान को याद करो उनका नाम जप करो तो ये मत सोचना कि भगवान आपकी पुकार सुनते होंगे या नहीं? कोई संदेह मत करना, बस ह्रदय से उनको पुकारना, तुम्हे खुद लगेगा कि हाँ, भगवान आपकी पुकार को सुन रहे है। और आपको इसका अहसास भी होने लगेगा।

कारोबार सब उन्ही का है। जहाँ रखें ख़ुश रहना और जो काम करना,सब सतगुरु का ही जानकर करना |

                     "बाबा जैमल सिंह"

जैसे जैसे हम भजन सुमिरन का अभ्यास करेंगें, मनुष्य जन्म के सुनहरे अवसर का लाभ उठाने की गहरी इच्छा हमारे कार्यों में साफ साफ दिखाई देने लगेगी। शुरू में हमें अपनी रूहानी तरक्की का अंदाज़ा आंतरिक अनुभवों से नही, बल्कि इस बात से होता है कि हमारे अंदर शांति और संतोष का भाव कितना बढ़ गया है। प्रारब्ध को भोगने के प्रति हमारी सोच कितनी बदल गयी है और दूसरे लोगों के प्रति हमारा व्यवहार कैसा है। हमारी तरक्की का पता इस बात से लगेगा कि क्या नामदान मिलने के बाद हम ज्यादा दयालु, ज़्यादा सहनशील हो गए हैं और दूसरों की सहायता करने में ज़्यादा उत्साह दिखाने लगे हैं?

 क्या हमें केवल आंतरिक अनुभव प्राप्त करने में ही दिलचस्पी है?

क्या हमारे अंदर पहले से बेहतर इंसान बनने और दूसरों के साथ अधिक प्रेम और क्षमा के साथ पेश आने की गहरी इच्छा पैदा हुई है या नही?

 यह स्वभाविक है कि हमारे भजन सुमिरन का प्रभाव हमारे जीवन के हर कार्य में दूसरों के साथ हमारे व्यवहार में साफ दिखाई देगा।

कोई भी व्यक्त्ति अपने आप में द्वीप नही है, अपने आप में पूर्ण नही है, हर व्यक्त्ति सृष्टिरूपी महाद्वीप का एक हिस्सा है।"

बाबाजी समझाते हैं कि हम दूसरों की सेवा और मदद इसलिए नही करते कि इससे हमारी रूहानी तरक्की होगी। बात इसके उलट है।ज्यों ज्यों भजन सुमिरन में तरक्की होती है, हमारे अंदर क़ुदरती तौर पर दूसरों की सेवा सहायता करने की इच्छा बढ़ती जाती है।

हमारे अंदर सेवा भाव जाग्रत होना इस इच्छा का ही परिणाम है। सेवा का अर्थ है संगत की सेवा द्वारा सतगुरु की सेवा करना। सेवा करनेवाले से ज़्यादा किसी दूसरे को इससे लाभ नही होता।

 सेवा का मक़सद है अपने प्रेम का दायरा बड़ा करना। सच्ची सेवा प्रेम का वह जज़्बा है जो प्रेम को और अधिक बढ़ता है। यही सेवा है। भजन सुमिरन करते हुए धीरे धीरे हम उस अवस्था में आ जाते हैं कि हम अपना हर कार्य सतगुरु का कार्य समझकर करने लगते है।

राधा स्वामी जी...

सुबह की अरदास



मेरे शहंशाह ...!!!
झपके न कभी आंख तेरा दीदार करते करते,
थके न कभी हाथ तेरी सेवा काम करते करते
निकले हरदम मुख से तेरा ही शुकराना ,
प्राण भी निकले तेरा नाम सिमरन करते करते
  🙏बक्श लवो !  दातेया ! बक्श लवो !
असी भुलनहार हा दातेया ! बक्श लवो !

आज का रूहानी विचार



बाबा सावन सिंह महाराज जी के अनमोल वचन शब्द से पहले न कोई सूरज सी न कोई चन्द्रमा और नही आकाश शब्द ही निराकार ही है असल में यह शब्द चेतन है सब सृष्टि शब्द के हुक्म मे है कोई भी चीज शब्द के विना प्रगट नहीं हो सकती है शब्द सब की जान है  इस संसार में मन माया का राज है यहां पर सच्ची शांति केसे मिल सकती है यह समझो कि माया की आग सब को लगी हुई है माया की अगणी में जीव दिन रात सड रहे हैं और अनेक प्रकार की चिन्ता लगी हुई है गुरु से युक्ति लेने के बाद भी सब माया जाल में फंसे हुए हैं इस माया जाल से सीरफ भजन सीमरन ही जीव को निकाल सकता है शांति की प्राप्ति के लिए आत्मा को भजन सीमरन द्वारा अंदुरूनी मंडलों की तलाश करनी पड़ेगी शांति की तलाश करना हर जीव का निजी काम है केवल नाम दान प्राप्त कर लेने से कोई सत्संगी नहीं बन जाता है सिर्फ युनिवर्सिटी में दाखिला लेने से कोई वी ऐ पी ऐच डी की डिग्री प्राप्त नहीं हो सकती है बी ऐ पास करने से पहले साधक को कई साल कई क्लासे पास करनी पड़ती है जब तक हम शब्द में लीन नहीं हो जातें और असी भावे जिनी मर्जी सत्संग सुदे रहे जीनी मर्जी सेवा करदे रहिए जिनीया मर्जी पुस्तका पड़ते रहे थे असी भजन सीमरन नहीं कर रहे असल में हम सत्संगी कहने कोई हक़ नहीं है.

Saturday, November 10, 2018

साखी - जब एक बच्चा 13 साल का हुआ



एक बच्चा जब 13 साल का हुआ तो उसके पिता ने उसे एक पुराना कपड़ा देकर उसकी कीमत पूछी।
बच्चा बोला 100 रु।
तो पिता ने कहा कि इसे बेचकर दो सौ रु लेकर आओ। बच्चे ने उस कपड़े को अच्छे से साफ़ कर धोया और अच्छे से उस कपड़े को फोल्ड लगाकर रख दिया। अगले दिन उसे लेकर वह रेलवे स्टेशन गया, जहां कई घंटों की मेहनत के बाद वह कपड़ा दो सौ रु में बिका।

कुछ दिन बाद उसके पिता ने उसे वैसा ही दूसरा कपड़ा दिया और उसे  500 रु में बेचने को कहा।
इस बार बच्चे ने अपने एक पेंटर दोस्त की मदद से उस कपड़े पर सुन्दर चित्र बना कर रंगवा दिया और एक गुलज़ार बाजार में बेचने के लिए पहुंच गया। एक व्यक्ति ने वह कपड़ा 500 रु में खरीदा और उसे 100 रु ईनाम भी दिया।

जब बच्चा वापस आया तो उसके पिता ने फिर एक कपड़ा हाथ में दे दिया और उसे दो हज़ार रु में बेचने को कहा। इस बार बच्चे को पता था कि इस कपड़े की इतनी ज्यादा कीमत कैसे मिल सकती है । उसके शहर में  मूवी की शूटिंग के लिए एक नामी कलाकार आई थीं। बच्चा उस कलाकार के पास पहुंचा और उसी कपड़े पर उनके ऑटोग्राफ ले लिए।

ऑटोग्राफ लेने के बाद बच्चे ने उसी कपड़े की बोली लगाई। बोली दो हज़ार से शुरू हुई और एक व्यापारी ने वह कपड़ा 12000 रु में ले लिया।

रकम लेकर जब बच्चा घर पहुंचा तो खुशी से पिता की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने बेटे से पूछा कि इतने दिनों से कपड़े बेचते हुए तुमने क्या सीखा ?
बच्चा बोला -  पहले खुद को समझो , खुद को पहचानो । फिर पूरी लगन से मन्ज़िल की और बढ़ो क्योकि जहां चाह होती है, राह अपने आप निकल आती है।'

पिता बोले कि तुम बिलकुल सही हो, मगर मेरा ध्येय तुमको यह समझाना था कि कपड़ा मैला होने पर इसकी कीमत बढ़ाने के लिए उसे धो कर साफ़ करना पड़ा, फिर और ज्यादा कीमत मिली जब उस पर एक पेंटर ने उसे अच्छे से रंग दिया और उससे भी ज्यादा कीमत मिली जब एक नामी कलाकार ने उस पर अपने नाम की मोहर लगा दी ।
तो विचार करें जब इंसान उस निर्जीव कपड़े को अपने हिसाब से उसकी कीमत बड़ा सकता है ।
तो फिर वो मालिक जिसने हम जीवों को बनाया है क्या वो हमारी कीमत कम होने देंगा ?

 जीवात्मा भी यहां आकर मैला हो जाता है लेकिन सतगुरु हम मैली जीवात्माओं को पहले साफ़ और स्वच्छ करते हैं, जिससे परमात्मा की नज़र में हम जीवात्माओं की कीमत थोड़ी बढ़ जाती है ।

 फिर सतगुरु हम जीवात्माओं को अपनी रहनी के रंग में रंग देते हैं, फिर कीमत और ज्यादा बढ़ जाती है।
और फिर सतगुरु हम पर अपने नाम की मोहर लगा देते हैं फिर तो इंसान अपनी कीमत का अंदाज़ा ही नही लगा सकता।

लेकिन अफ़सोस इतना कीमती इंसान अपने आप को कौड़ियों के दाम खर्च करते जा रहा है उसे अपने आप की ही पहचान नही , उसे अपने ऊपर लगी सतगुरु के नाम रूपी कृपा और उस अपार दया की कद्र नही, क्योकि अगर कद्र होती तो उसके☝ हुकुम में रहकर भजन बन्दगी को पूरा पूरा समय देकर अपने इंसानी जामे का मकसद और उसकी कीमत भी जरूर समझते


Question Answers With Baba Ji in Malaga, Spain 2018

1. Question- “Babaji I really miss being in India, near to you, near to seva, my parents everything. I feel I shouldn’t have had come this far away from India. I really wish to go back?”

1. Answer- I understand dear. I also wish to come back here and relive all the fun moments of my life. No worries, nothing just happiness. But my dear life is full of responsibilities, and we have to fulfil our responsibilities and god is always with us no matter what.

2. Question- “Babaji my mother died recently and i really miss her so much. I was very close to her all my life. How can I cope up with these feelings of missing her?”

2. Answer- Dear you are being selfish here. Would you like if she would lure in pain on bed and leave this world in pain? And why are you not thinking about the place she is in right now, in a beautiful world that she has gone into. You should feel for her, her happiness is more important than your selfishness my dear. Life moves on, remember her teachings and cherish your memories with her.

3. Question- “Babaji thank you for the beautiful life you have given me. I am blessed with two kids also, I have very nice wife. I can never thank you enough for the perfect life you have given me. But Babaji I have request to make that, if it was possible to have your picture with a smile because while sitting on mediation when our mind is distracted it is good to remember your smiling face or open eyes and see your smiling picture in front of us?”

3. Answer- No not at all. No doing dhyan over my pictures. I will take all other pictures away too if you ever did dhyan of my pictures. This is absolutely not acceptable. Photo is just an object nothing more. And we are not allowed to do dhyan of any object. And when you go out work all day in office, do you keep your wife’s photo also to remember her face all the time? “The man said no no Babaji” and then Babaji is said “don’t even dare to forget her. If you did then you will see what she will do with you”. Everyone started laughing.

4. Question- “Babaji please keep showering your blessings on me and my family. And please initiate me soon.”

4. Answer- Initiate you NOW? Girl said “no not now” Babaji said “You asked for initiation and when I said now and now you are saying no. Girl said “ I meant to say when I will be ready after finishing my studies and everything.” Babaji said “that’s the thing dear, we should first get ready and then ask for something to him not the things for which ourselves are not ready yet.”

5. Question- “Babaji,  you have done everything so good for me and my family until today with your grace. Thank you so much. But Babaji I have business of building like we make buildings and we sold one building to some people years ago and there were some defects in it which are not visible to a common human and suddenly now those people after years and years are telling us about those defects and fighting with us for money. So I just need your suggestion about what I should do now?”

5. Answer- Why did you even leave any defects there when you already knew that they will be considered defected. The man said “but no one ever gets to know about them and everyone do them” Babaji said “but YOU KNEW it was wrong thing to do, right? Then why u did. Now you should try to fix it and rest god will take care but you must recover your part of damage that you did knowingly.

6. Question- “Babaji, thank you for everything in life. I have a perfect husband. He loves me so much. But he is not a satsangi and i have a feeling that he will soon come on the path and will be initiated by you. Babaji on some days I miss going to satsang as my husband says thag family is equally important as your spiritual path. So I skip satsangs on some days and we both do satsand at home. Is it okay?

6. Answer- Satsang at home? How’s that possible? She said “to talk about spirituality”. Babaji said “well good excuse (smiled). And i can imagine men doing satsang in bed (laughed). Well dear, you should tell him that all day I am with you and I give proper time to everything. You should have balance in life. And going for 2 hours away from him shouldn’t be a problem. I don’t understand why you women can’t handle men. Its so easy, just pump up their ego a little bit and do some love talks and they will be best pets ever. And you might not even know that he will go himself in car to drop you to satsang (smiled).

7. Question- “Babaji, I am in a commitment living relationship with my girlfriend. She is also satsangi. We love each other very much. With your grace everything is going good. I am actually confused about taking naam daan as I am in a living relationship. So can you please help me what I should do?

7. Answer- What is more important sex or lord? (Started laughing/smiling). Silence for few seconds why don’t you marry her? He said “ I am too young for marriage yet” babaji asked “how old are you” he said “22” babaji said “22 is young? 😳 so you want to marry when you will be 50? (Everyone laughed) He said “ok i think I have my answer I will ask next question” babaji said “no no why don’t you answr my question first (laughed). He said “Babaji like you say we should have lord 24x7 on our minds, how is it possible to do so? Babaji said “well dear, there was a psychologist who ones drew an art which got really famous and he drew a man with a cloud on his head and inside that cloud was a picture of a naked women and description of the picture was- what is on men’s mind all the time. So i wonder how we can think of sex 24x7 and not about lord (again laughed and eveyone laughed too) the boy said “Ok i think j got my answe and would ask next question” babaji again said “no no answer me now (laughed again).  He said “how is it possible to have positive thinking all the time?” Babaji said “how can you think of sex all the time, exactly like that you can have positive thinking (laughed again). He said “but babaji...” and Babaji said “Its better to stick to the but only (laughed again). Cherish what you have”.

आज का रूहानी विचार



बाबा जेमल सिंह महाराज जी के अनमोल वचन कोई किसी क़दर आदर करें या निंदा करे आदर व स्तुति में खुश नहीं होना और निंदा मे नाराज नहीं होना सदा राजी रहना और मालिक की रजा मे खुश रहना जहां भी रखे हमे यह चिंता करनी चाहिए हमारे दिन घडी पहर पल सांस सब गिनती के हैं यह समय फिर से कभी नहीं मिलनेवाला नहीं है भजन का फिक्र करना चाहिए मन को दुनिया की वासना से निकालो सूरत को शब्द मे रखो हर वक़्त यही ताकीद है.

सकारात्मक सोच



एक राजा था जिसकी केवल एक टाँग और एक आँख थी। उस राज्य में सभी लोग खुशहाल थे क्यूंकि राजा बहुत बुद्धिमान और प्रतापी था।

एक बार राजा के विचार आया कि क्यों खुद की एक तस्वीर बनवायी जाये।फिर क्या था, देश विदेशों से चित्रकारों को बुलवाया गया और एक से एक बड़े चित्रकार राजा के दरबार में आये।राजा ने उन सभी से हाथ जोड़ कर आग्रह किया कि वो उसकी एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनायें जो राजमहल में लगायी जाएगी।

सारे चित्रकार सोचने लगे कि राजा तो पहले से ही विकलांग है, फिर उसकी तस्वीर को बहुत सुन्दर कैसे बनाया जा सकता है ?ये तो संभव ही नहीं है और अगर तस्वीर सुन्दर नहीं बनी तो राजा गुस्सा होकर दंड देगा।यही सोचकर सारे चित्रकारों ने राजा की तस्वीर बनाने से मना कर दिया।

तभी पीछे से एक चित्रकार ने अपना हाथ खड़ा किया और बोला कि मैं आपकी बहुत सुन्दर तस्वीर बनाऊँगा जो आपको जरूर पसंद आएगी।फिर चित्रकार जल्दी से राजा की आज्ञा लेकर तस्वीर बनाने में जुट गया।काफी देर बाद उसने एक तस्वीर तैयार की जिसे देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और सारे चित्रकारों ने अपने दातों तले उंगली दबा ली।
उस चित्रकार ने एक ऐसी तस्वीर बनायीं  (जिसमें राजा एक टाँग पूरी तरह से दिखाई दे ऐसे घोड़े पर बैठा है,और एक आँख रानी साहिबा के लटक रहे झुल्फो से ढकी हुई है!) राजा ये देखकर बहुत प्रसन्न हुआ कि उस चित्रकार ने राजा की कमजोरियों को छिपाकर कितनी चतुराई से एक सुन्दर तस्वीर बनाई है।राजा ने उसे खूब इनाम एवं धन दौलत दी।

तो क्यों ना हम भी।दूसरों की कमियों को छुपाएँ,उन्हें नजरअंदाज करें और अच्छाइयों पर ध्यान दें।आजकल देखा जाता है कि लोग एक दूसरे की कमियाँ बहुत जल्दी ढूंढ लेते हैं चाहें हममें खुद में कितनी भी बुराइयाँ हों लेकिन हम हमेशा दूसरों की बुराइयों पर ही ध्यान देते हैं कि अमुक आदमी ऐसा है, वो वैसा है।

हमें नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोचना
चाहिए और हमारी सकारात्मक सोच हमारी हर समस्यों को हल करती है.....🙏

"केतिया दुःख भुख साद मार यह भी दात तेरी दातार"

मालिक दुख उसे ही देता है जिसे अपने करीब लाना चाहता है , एक पंक्ति जपजी साहेब में आती है "केतिया दुःख भुख साद मार यह भी दात तेरी दातार"

गुरु नानक पातशाह जी कहते है कि प्रभु ये दुःख भी तेरी किरपा है जो मुझे तेरी याद दिलाते है ।

एक अपाहिज सोचता है क़ि हे मालिक अगर में चल सकता होता तो रोज तेरे दर पर आता लेकिन हक़ीक़त तो यह है की अगर वो ठीक होता तो कभी ईस्वर के बारे में सोचता भी नही ।

याद करो जब हम सुखी थे तो सांसारिक व्यवस्तताओ में ही व्यस्त थे एक बार अपने अंदर झाँक कर देखो आपने पहले कभी मालिक को इतनी भावना से याद किया है , जितनी भावना से आज कर रहे है ।  ये दर्द ये दुःख मालिक की किरपा है क्योंकि ये हमे मालिक से जोड़ती है ।

 "दुःख दारु सुख रोग भया जा सुख ताम ना होइ" दुःख असल मायने में दारु (दवा) है और दवा तो कड़वी होती ही है ,पर ठीक होने के लिए दवा तो पिनी ही पड़ेगी।

 भाव मालिक तक पहुँचने के लिए दुःख तो सहना ही होगा हक़ीक़त तो यह है कि यदि पानी के बगैर सागर में डूबा नही जा सकता तो पानी के बगैर सागर पार भी नही किया जा सकता । उसी तरह संसार दुखो से भरा हुआ है।

 अब यह हम जीवों पर डिपेंड करता है कि  दुःख में डूब कर उस☝ मालिक को भूलना है या दुखो को ही साधन बना कर इस संसार सागर से पार उतारना है.।

 गुरु नानक साहिब की बाणी के कुछ सिद्धान्त।

अगर जोतिष सच होते तो जन्म पत्री और कुंडलियां आदि मिला कर किये हुए विवाहो में कभी  तलाक ना होता।

अगर नजर लगने से बिज़नेस में घाटा आता तो बिल गेट्स , अम्बानी जैसे कब के सड़क पर आ जाते क्योंकि इनको तो सारी दुनिया नजर लगाती है।

अगर सूरज को चढ़ाया पानी सूरज तक जाता तो हमारी जनता ने सूरज अब तक ठंडा कर दिया होता।

अगर पंडितो के हवन और ग्रंथिओ के अखंड पाठ करवाने से भविष्य बदल जाता तो अब तक इन लोगो के बच्चे जरूर अरबपति होते।

            ।।जरा सोचो।।

Wednesday, November 7, 2018

नाम जप की महिमा



एक कसाई था सदना। वह बहुत ईमानदार था, वो भगवान के नाम कीर्तन में मस्त रहता था। यहां तक की मांस को काटते-बेचते हुए भी वह भगवद्नाम गुनगुनाता रहता था।

एक दिन वह अपनी ही धुन में कहीं जा रहा था, कि उसके पैर से कोई पत्थर टकराया। वह रूक गया, उसने देखा एक काले रंग के गोल पत्थर से उसका पैर टकरा गया है। उसने वह पत्थर उठा लिया व जेब में रख लिया, यह सोच कर कि यह माँस तोलने के काम आयेगा।

वापिस आकर उसने वह पत्थर माँस के वजन को तोलने के काम में लगाया। कुछ ही दिनों में उसने समझ लिया कि यह पत्थर कोई साधारण नहीं है। जितना वजन उसको तोलना होता, पत्थर उतने वजन का ही हो जाता है।

धीरे-धीरे यह बात फैलने लगी कि सदना कसाई के पास वजन करने वाला पत्थर है, वह जितना चाहता है, पत्थर उतना ही तोल देता है। किसी को एक किलो मांस देना होता तो तराजू में उस पत्थर को एक तरफ डालने पर, दूसरी ओर एक किलो का मांस ही तुलता। अगर किसी को दो किलो चाहिए हो तो वह पत्थर दो किलो के भार जितना भारी हो जाता।

इस चमत्कार के कारण उसके यहां लोगों की भीड़ जुटने लगी। भीड़ जुटने के साथ ही सदना की दुकान की बिक्री बढ़ गई।

बात एक शुद्ध ब्राह्मण तक भी पहुंची। हालांकि वह ऐसी अशुद्ध जगह पर नहीं जाना चाहता थे, जहां मांस कटता हो व बिकता हो। किन्तु चमत्कारिक पत्थर को देखने की उत्सुकता उसे सदना की दुकान तक खींच लाई ।

दूर से खड़ा वह सदना कसाई को मीट तोलते देखने लगा। उसने देखा कि कैसे वह पत्थर हर प्रकार के वजन को बराबर तोल रहा था। ध्यान से देखने पर उसके शरीर के रोंए खड़े हो गए। भीड़ के छटने के बाद ब्राह्मण सदना कसाई के पास गया।

ब्राह्मण को अपनी दुकान में आया देखकर सदना कसाई प्रसन्न भी हुआ और आश्चर्यचकित भी। बड़ी नम्रता से सदना ने ब्राह्मण को बैठने के लिए स्थान दिया और पूछा कि वह उनकी क्या सेवा कर सकता है!

ब्राह्मण बोला- “तुम्हारे इस चमत्कारिक पत्थर को देखने के लिए ही मैं तुम्हारी दुकान पर आया हूँ, या युँ कहें कि ये चमत्कारी पत्थर ही मुझे खींच कर तुम्हारी दुकान पर ले आया है।"

बातों ही बातों में उन्होंने सदना कसाई को बताया कि जिसे पत्थर समझ कर वो माँस तोल रहा है, वास्तव में वो शालीग्राम जी हैं, जोकि भगवान का स्वरूप होता है। शालीग्राम जी को इस तरह गले-कटे मांस के बीच में रखना व उनसे मांस तोलना बहुत बड़ा पाप है।

सदना बड़ी ही सरल प्रकृति का भक्त था। ब्राह्मण की बात सुनकर उसे लगा कि अनजाने में मैं तो बहुत पाप कर रहा हूं। अनुनय-विनय करके सदना ने वह शालिग्राम उन ब्राह्मण को दे दिया और कहा कि “आप तो ब्राह्मण हैं, अत: आप ही इनकी सेवा-परिचर्या करके इन्हें प्रसन्न करें। मेरे योग्य कुछ सेवा हो तो मुझे अवश्य बताएं।“

ब्राह्मण उस शालीग्राम शिला को बहुत सम्मान से घर ले आए। घर आकर उन्होंने श्रीशालीग्राम को स्नान करवाया, पँचामृत से अभिषेक किया व पूजा-अर्चना आरम्भ कर दी।

कुछ दिन ही बीते थे कि उन ब्राह्मण के स्वप्न में श्री शालीग्राम जी आए व कहा- हे ब्राह्मण! मैं तुम्हारी सेवाओं से प्रसन्न हूं, किन्तु तुम मुझे उसी कसाई के पास छोड़ आओ।

स्वप्न में ही ब्राह्मण ने कारण पूछा तो उत्तर मिला कि- तुम मेरी अर्चना-पूजा करते हो, मुझे अच्छा लगता है, परन्तु जो भक्त मेरे नाम का गुणगान - कीर्तन करते रहते हैं, उनको मैं अपने-आप को भी बेच देता हूँ। सदना तुम्हारी तरह मेरा अर्चन नहीं करता है परन्तु वह हर समय मेरा नाम गुनगुनाता रहता है जोकि मुझे अच्छा लगता है, इसलिए तो मैं उसके पास गया था।

ब्राह्मण अगले दिन ही, सदना कसाई के पास गया व उनको प्रणाम करके, सारी बात बताई व श्रीशालीग्रामजी को उन्हें सौंप दिया। ब्राह्मण की बात सुनकर सदना कसाई की आंखों में आँसू आ गए। मन ही मन उन्होंने माँस बेचने-खरीदने के कार्य को तिलांजली देने की सोची और निश्चय किया कि यदि मेरे ठाकुर को कीर्तन पसन्द है, तो मैं अधिक से अधिक समय नाम-कीर्तन  ही करूंगा l

दिवाली



*एक बार डेरे में दिवाली वाले दिन महाराज जी ने अपने सत्संग के बाद फ़रमाया के भाई डेरा निवासी भी अगर चाहे तां वो अपने घर या अपने रिश्तेदारां दे घर जाके दिवाली मना सकदे हाँ, साढ़े वलों कोई ऐतराज़ नहीं है ,,, शाम नू 4 बजे 90% डेरा निवासी अपने मकान! नू छड गए दिवाली मनोन लई,,, डेरे विच 4 वीर जो बारे ही गुरमुख सन, आपस विच मिले, और सबने किहा के आज कुलमालिक अपनी कोठी विच अकेले हाँ, क्यों न आज अप्पान चारे महाराज जी अगे पेश हो जाइये.. जद चारों वीर महाराज जी अगे पेश होये ते किहा के हज़ूर सच्चे पातशाह अज्ज दिवाली है, गुरबाणी विच आओंदा है के दिवाली साधुअ! दी हर रोज़ ही हुंदी है, पर साढ़ी दिवाली भी आज पूरी कर दो,, और साढ़े ते दया मेहर करदो ! महाराज जी ने फ़रमाया के बेटा रात नू जदद
डेरा निवासी दिवाली मना के आ जान तुसी तद चुप करके इथे आ
जाना, तुहानू सारे दरवाज़े खुले मिलनगे,, ते वो चारे वीर बड़े खुश
हुए, रात दा इंतज़ार करन लगे, जदद रात हुई तां चारे(4) वीर बड़े ही प्यार नाल हुज़ूर दे चुबारे दिया पौड़ियां चढ़ गए,, अगे सारे दरवाज़े खुले ही मिले, जद कमरे विच पहुंचे ता देख के 4 गद्दे  बिछे होये सी उसदे उत्ते एक एक चादर सी,, तां हुज़ूर ने किहा बैठ जाओ,, जद्द भजन ते बैठे तां मालिक ने दया मैहर किती तां वो चारों चन्दर्मा मंडल, तारा मंडल ते सूरज मंडल पार कर गए और गुरु दे प्यार विच मस्त हो गए, कुछ घंटिया बाद हज़ूर ने उन्हां दी सूरत निचे उतारी ,, 'ते किहा बेटा आज दी दिवाली तुहाडी असल ते अटल है, हुन तुसीं गुरु दी प्रीत ते
परतीत करके भजन सिमरन करदे रहो,जब वो चारो बाहर आये तां ऊंहा दी अवस्था ही बदल चुकी सी, सो प्यारे वीरो सानु परमार्थक दिवाली मनोन दी कोशिश करनी है सानु
,अंदर विच दिया जलौना है, इसलिए "संत दिवाली नित करे...

राधास्वामी जी l

एक दिन जब बाबा जी स्टेज पर आये तो बाबा जी क्या कहते है किर्पया ध्यान से सुनना

एक दिन बाबाजी स्टेज पर आए ओर बडे मनमोहक से चिरपरिचित अंदाज मे संगत से राधास्वामी की ओर गद्दी ( कुर्सी) पर विराजमान हुए दृष्टि संगत पर डाली...